भावना और मानव
इनका अटूट नाता
उसके पास भाषा है
शब्दों का भंडार हैं
फिर भी वह व्यक्त नहीं करता
सकुचाता है
मन ही मन मे कुढ़ता है
दुख और पीड़ा उसे सालती है
पर वह मुखौटा औढे रहता है
मुसकराहट का
बनावटी पन का
यह शायद उसकी मजबूरी है
इस मामले मे तो पशु - पक्षी अच्छे हैं
वह खुश होते हैं
चिल्लाकर ,चिंचियाकर ,चिंघाड कर अपनी खुशी प्रकट कर लेते हैं
दुख मे भी वह रोकर ,मिनमिनाकर ,कर्कशता से
पर मानव हंसता और रोता भी है तो सोच कर
कितना मजबूर होता है यह मजबूत इंसान
वह जानता है
वह समझता है
वह डरता है
इसलिए कमजोर पड़ जाता है
इस दुनिया मे सहानुभुति के दो शब्द मुश्किल से मिलते हैं
बात बनाने वाले बहुत
आपके मुंह पर आपकी
आपके पीठ पीछे निंदा और बुराई
पर यह वह भूल जाते हैं
वह आपकी निंदा नहीं कर रहे हैं
वह आपका मजाक नहीं उड़ा रहे हैं
वह सृष्टि के सृजनकरता का मजाक उड़ा रहे हैं
वह सब देख भी रहा है
वह ईश्वर जो है
उसकी मर्जी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता
भाग्यविधाता है वह
वह तो किसी को नहीं छोड़ता
बस अपने गिरेबान मे झांकने की जरूरत है
कभी कभी दूसरों की आँख का तिनका देखने वाले अपनी आँख की तहशीर भी नहीं देख पाते
वह तो ऐसी कहावत हो गई
सूप हंसे तो हंसे
चलनी भी हंसे ,जिसमें सहस्रों छेद
अतः व्यक्ति से मत डरिये ,निश्चिंत रहिए
गोस्वामी तुलसी दास के रामचरित मानस की पंक्तियाँ
लाभ ,हानि ,जीवन ,मरण ,यश ,अपयश
सब विधि हाथ
राम और सीता की कुंडली का मिलान वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे गुरूओ ने किया था
पर जनकदुलारी ,अयोध्या की कुलवधु और महारानी जंगल मे ही भटकती रह गई
वासुदेव कृष्ण का जन्म ही जेल मे हुआ था
जहाँ उनके मामा ने देवकी के सात संतानों का वध किया था
तब तो हम साधारण इंसान हैं
वक्त की मार तो सब पर पड़ती है
. होइए वही जो राम रचि राखा
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