भाषा मर रही है
धीरे धीरे सांस ले रही है
उसे प्राणवायु की जरूरत है
यह मानव की इजाद है
पुरातन काल से हमारे साथ है
हमारे असतित्व की पहचान है
सदियां बीत गई
यह नये नये कलेवर धारण करती रही
विकास के पायदान पर आगे बढती गई
यह तब था जब हमारे हाथ मे कलम थी
आज मशीन आ गई है
बटन तो दब जा रहे हैं
भावनाएँ मर रही है
सब शार्टकट हो रहा है
ऐसा न हो की हम भाषा को ही भूल जाय
यह इमोजी का मायाजाल
हमें भी जकड़ रहा है
भाषा को पकड़ कर रखना है
आनेवाली पीढी को भूत और वर्तमान से मिलाना है
हमारा इतिहास जीवंत रहे
मानवता जीवित रहे
तब भाषा को सींचना पडे़गा
उसे पल्लवित - पुष्पित करना है
उसकी सुंगध को महसूस करना है
उसे सब तरफ बिखराना है
उसे मरने नहीं देना है
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