घर बडा होता है
उसके अनुपात मे दरवाजा बहुत छोटा होता है
यह हमारा शरीर है
पर हमारा जो मन होता है
वह दिखता तो नहीं
पर विशालता को समेटे हुए
कभी सुकून नहीं
बड़ी बड़ी इच्छाए
इस मन मे समाई
शरीर को तो पता ही नहीं चलता
वह तो दरवाजे के समान है
जिसे अंदर का पता नहीं
कब किसका प्रवेश हो इस मन मे
कितना कुछ भरा है इसमें
यह कभी रीता नहीं रहता
इसकी क्षमता का अंदाजा लगाना मुश्किल
यह मन जो है
मन मुताबिक करना है
मन के साथ चलना है
यह सूक्ष्म है
पर विशालता को समेटे हुए
यह कभी झूठ नहीं बोलता
कभी धोखा नहीं देता
हम इसको भले नजरअंदाज करें
यह कभी नहीं करता
हर पल साथ निभाता
ऐसा होता है मन
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