रात गहरा रही है
मन भी घबरा रहा है
कल की सुबह कैसी होगी
उगता सूरज देख पाएंगे भी नहीं
अपनों से बात हो पाएगी भी कि नहीं
घर वापस लौट कर जा पाएंगे कि नहीं
डर दूश्मन से नहीं
उनका तो जम कर मुकाबला करना है
छक्के छूड़ा देना है
हर गोली का जवाब देना है
डर मौत से नहीं
डर प्यार से है
जुदाई से है
मन मे मलाल रह जाने का है
दूश्मन तो धूर्त है
वह सामने से वार नहीं करता है
पीठ पीछे षड्यंत्र रचता है
हमारी बहादुरी दिख ही नहीं पाती
अदने से आंतकवादी से लड़ाई
वह तो मानव बम बना है
उसका तो कुछ नहीं बिगड़ता
उद्देश्य पूरा हो जाता
पर हमारी शक्ति का दूरूपयोग
इनको सामूल नष्ट कर डाले
सुबह के सूरज के निकलने के साथ ही
तभी मन शांत होगा
यह बैचेनी यह घबराहट डर से नहीं
शक्ति से है
बस मौका मिल जाय
छूट मिल जाय
तब जीवन सार्थक हो जाय
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