दिल कुछ कहता है
दिमाग कुछ कहता है
इन दोनों के बीच दंव्द्ध चलता रहता है
एक कहता है मेरी सुनो
दूसरा कहता है मेरी मानो
कब कौन किस पर भारी पड़ जाय
यह तो वक्त पर निर्भर है
कब दिल ,दिमाग पर हावी हो जाय
भावना के वश मे हो जाय
कहा नहीं जा सकता
अक्सर होता वही है
हम जानते हैं
समझते भी हैं
फिर भी भावनाओं के वशीभूत हो जाते हैं
एक गलत निर्णय सारी जिंदगी को बदल देता है
तब पछतावा होता है
पता था हमें
फिर भी वह कदम उठाया
अंजान बने रहे अंजाम से
फिर रो रहे हैं
कुढ़ रहे हैं
अब भी दिल की ही सुन रहे हैं
दिमाग कह रहा है
छोड़ो जो हुआ सो हुआ
अभी बहुत कुछ बाकी है
सब खत्म तो नहीं हुआ
जिंदगी नये सिरे से शुरू हो सकती है
पर दिल क्यों माने यह बात
वह तो इमोशनल फूल है
हमें भी बना रहा है
हमें उलझा रहा है
रोक रहा है
आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा
उसी मे अटका रखा है
इन दोनों के बीच फंस जाते हैं लोग
एक कहता है छोड़ो
दूसरा जकड़ रखा है
अब क्या करें ??
जब दिल मानता ही नहीं
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