Tuesday, 9 April 2019

बचपन -बुढ़ापा

आ गए फिर वही दिन
जब गिरते पड़ते उठते थे
नये नये दांतों से प्यारी मुस्कान बिखेरते थे
अब भी हम वही है
बस समय बदल गया है
अब दांत जा रहे हैं
हम पोपली हंसी हंस रहे हैं
जबान तब भी तुतलाती थी
अब भी तुतला रही है
तब बड़े डाटते थे
आज बच्चे डाट रहे हैं
तब बुरा लगने पर रोते थे
आज भी रोते हैं आंसू छिपाकर
तब भी सब कुछ भूल जाते थे
आज भी वही हाल है
तब खाना खाने की झिकझिक
आज भी कुछ खाना मुश्किल
शरीर की क्रिया मंद हो रही
कोई कंट्रोल नहीं रहा
तब बचपन था
आज बुढ़ापा है
तब बचपना था
आज परिपक्वता है
फर्क तो नजरिए का है
बदला तो कुछ भी नहीं
यही तो जीवनरीति है
जीवन के दो किनारे
दोनों ,दूसरों के सहारे
मध्य वाला कार्यरत
वह दूसरों के लिए
उस पर बच्चों की जिम्मेदारी
उस पर बड़े -बूढों की जिम्मेदारी
यही सब निभाना है
जब संसार -सागर मे रहना है

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