चीड़िया की चीं चीं
कबूतर का गुटरगूँ
कौए का कांव कांव
बस यही रह गई
और आवाजें तो मानों गुम हो गई
आवाज के साथ दिखाई भी नहीं देते
अब तो इनसे परिचय करना है
तब चिड़ियाघर की सैर करना है
सब लुप्त हो रहे हैं
जंगल भी कट रहे हैं
पेड़ और बगीचे भी नाममात्र
कहाँ जाय ये पक्षी
कहाँ ढूढ़े अपना रैन बसेरा
कभी भूल भटक आ भी गए
तब भक्ष्य बन जाते
बहुत मुश्किल है
इनका असतित्व बचाना
हम मानव है
शहर मे रहना है
इमारतें बनाना है
अपना घर बसाने के लिए
किसी निरीह का बसेरा उजाड़ना. है
ऐसा न हो कि बसते बसते
हम ही रह जाय
यह चीं चीं
कांव कांव
गुटरगूँ गुटरगूँ
पीउ पीउ
मिठु मिठु
सुनने को तरस जाय ।
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