हरी -भरी वसुंधरा
कर रही गुहार
रहने दो मुझे हरा -भरा
जंगल ,वृक्ष को लहलहाने दो
यह जीवनदाता है
इनकी वजह से सांस आती जाती है
यह सलामत तो मैं सलामत
मैं सलामत तो तुम सलामत
गुजारिश है सबसे
इन्हें मत काटो
मत नष्ट करो
इन पर रहम करो
जंगल ,पर्वत ,नदी ,झरने
यही तो मेरे हाथ -पैर हैं
यह नहीं रहेंगे
तब तो मैं लाचार हो जाऊँगी
अकेले कंधे पर आपका बोझ नहीं उठा पाउंगी
लड़खड़ाने लगूंगी
जिस दिन मैं लड़खड़ाई
उसका अंजाम कितना भयंकर??
यह सोच कर ही दिल कांप उठता है
मैं मां हूँ ,धरती माता हूँ
अपने बच्चों को तिल -तिल मरते नहीं देख सकती
माता तो सबकी भलाई चाहती है
उसकी बात मानना संतान का कर्तव्य बनता है
अभी भी बहुत देर नहीं हुई है
सचेत हो जाओ
चेतावनी है तुम्हारे लिए
केवल अपनी ही नहीं
मुझसे जुड़ी हर जीव -चीज की रक्षा करनी है
तभी आप खुश रह पाओगे
स्वार्थी मत बनो
सभी की खुशियों मे तुम्हारी खुशियाँ भी निहित है
पेड़ लहलहाएंगे
जंगल झूमेंगे
नदी लहराएगी
झरने झरझराएंगे
पक्षी चहचहाए़गे
पशु गुर्राएगे
तभी तो तुम भी मुस्कराओगे
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