नजरों की भी अपनी भाषा होती हैं
जो बिना कहे सब कह जाती है
नजर जब झुकती है
तब उसमें एक शर्म - हया होती है
नजर जब छिपाती है
तब वह लज्जित होती हैं
नजर जब नजर मिलाती हैं
तब वह चुनौती होती हैं
नजर जब स्थिर रहती हैं
तब उदास होती हैं
नजर जब पथराई रहती है
तब दुखों का पहाड़ टूट पडा होता है
नजर जब पलकें हिलाती है
तब वह स्वीकार होता है
नजर जब यहाँ वहाँ देखती हैं
तब वह टालना होता है
नजर जब प्रेम से देखती हैं
तब अपनापन होता है
नजर भी मुस्कराती है
सलाम करती है
शुक्रिया अदा करती है
प्यार महसूस कराती है
क्रोध और घृणा व्यक्त करती हैं
झूमती और गाती भी है
दीवाना बना देती हैं
वह बहुत बडी जादूगर है
हर नजर कुछ कहती है
उनको समझना है
नजर का अपना अंदाज है
इसलिए नजर को नजरअंदाज मत करिए
उसे पढिए
उसमें इतनी ताकत है
वह बिना कहे
सब कह जाती है
नजरों को परखना
नजरों से खेलना
यह भी तो जीवन जीने की कला है
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