गुलमोहर खिला हुआ था
तपती धूप थी
लेकिन उसकी लालिमा बरकरार थी
तपिश मे मानो वह और सुर्ख हो रहा था
लाल लाल अंगारों सा दहकता
स्पर्धा कर रहा हो जैसे
धूप सर पर चमक रही थी
वह खिलखिला रहा था
कह रहा था
संध्या तक थक जाएंगी
प्रस्थान कर लेगी
मैं तो डटा रहूँगा
झूमता रहूँगा
हार मेरी फितरत नहीं
जितना जलूगा
और निखरूगा
मैं किसी छाह का मोहताज नहीं
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