चलना ही जिंदगी है
चलते रहो चलते रहो
चलते ही रहे आज तक
बिना थके बिना रुके
पर कब तक चले
अब तो कदमों की चाल भी धीमी
उस पर आलम यह है कि
जिंदगी वही अटकी है
अब तो कदम भी लडखडाने लगे हैं
सोच आती है
चले ही क्यों ??
क्या मिला
जिंदगी तो पैंतरे बदलती रही है
वही ठीक था
पर विड॔बना देखे
पीछे भी कदम नहीं ले सकते
समय ने कुछ छोड़ा ही नहीं है
न सोचने के लिए
न आगे बढने के लिए
न नया कदम उठाने के लिए
डर लगने लगा है
कब और किस रूप में धोखा दे देंगी
कब साथ छोड़ देगी
कब अधर में लटका देंगी
उलझा देगी
अपने तो दूर खडी तमाशबीन की तरह
और हम उसके ही भ॔वर में गोते लगाते
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