मैं बगिया का माली हूँ
मुझे अपने बगीचे के कण कण से प्यार
उसकी मिट्टी से पेड तक
हर फूल से
हर कली से
हर पौधे से
हर लता से
जी भर कर प्यार
उनको सवारता हूँ
सहेजता हूँ
जतन करता हूँ
खाद पानी देता हूँ
जब यह बडे हो जाते हैं
लहलहाने है
फल फूल देने लगते हैं
खुशबू से महकने लगते हैं
तब मैं भी खुश
मैं माली जो ठहरा
अपने हाथों लगाई हुई बगिया
उसे हमेशा हरा भरा देखना चाहता हूँ
इनको मुस्कराते देख
मेरी मेहनत सफल
इसके लिए क्या किया
यह कोई मायने नहीं
बस माली तो अपनी बगिया को लहलहाते देखना चाहता है
उसकी जिंदगी उन तक है
उनका मुरझाना
नष्ट होना
टूटना
उसे गंवारा नहीं
वह तो हर पल प्रतिबद्ध है
उसका जीवन ही वही है
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