यह तो प्रेम की बात है उधो
वह तुम नहीं समझोगे
वह नहीं आएंगी यहाँ
न गोपियां न राधा
वे सब मुझसे बहुत प्रेम करती हैं
मैं उनको छोड़ आया हूँ
उन्होंने मुझे नहीं छोडा है
मैं तो उनके दिल में हूँ
यह बात तुम नहीं समझोगे
यहाँ तुम्हारे ज्ञान के लिए कोई जगह नहीं
उनकी भक्ति मे प्रेम रस समाया है
वह विरह में प्राण दे देंगी
पर आएगी नहीं
स्वाभिमानी जो है
यह स्वाभाविक भी है
जिससे प्रेम करते हो
उस पर अधिकार होता है
उनके लिए मैं ईश्वर नहीं
कन्हैया हूँ
निर्गुण निराकार नहीं
सगुण साकार हो
उद्धव समझने की कोशिश कर रहे थे
यह जग का पालनहार है
ऐसे प्रेम में उलझे हैं
धन्य है
जिन्हें इतना प्रेम प्राप्त हुआ
ईश्वर को भी जकड रखा है
सारा ज्ञान
सारी साधना एक तरफ
गोपियों और राधा का प्रेम
सबसे ऊपर
धन्य हैं ब्रजवासी
धन्य है वह भूमि
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