दर्द जो सहा है मैंने
तुमको तो उसकी भनक नहीं
तुम तो उलझे रहे अपने में
अपने सिवा किसी की खबर नहीं
अपनी सोच
अपना आराम
अपना ख्यालात लादते रहे
मैं सहती रही
घुटती रही
जद्दोजहद करती रही
समझौता करती रही
तुम मनमानी करते रहे
भावनाओं को ठेस पहुंचाते रहे
मैं ऊफ भी न कर सकी
मुस्कराती रही
लोगों को दिखाती रही
अंदर से मन जारजार रोता रहा
तुमको लगता रहा
यही प्यार है
घुटती रही पर बोल न पाई
क्योंकि तुमने तो बोलने का अधिकार भी न दिया
पिंजरे में बंद पक्षी फडफडाता रहा
देखने वालों को लगा
कितना सुकून और आराम है
पर दिखावा कब तक
कभी तो विद्रोह
प्यार जबरन नहीं
मन से होता है
जब मन को ही मार डाला
तब प्यार कैसा
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
No comments:
Post a Comment