प्रेम समर्पण चाहता है
त्याग चाहता है
प्रेम वाचाल नहीं होता
वह लाचार भी नहीं होता
वह भावना से जुडा होता है
उसका अनुभव होता है
बिना कहे बिना सुने
एक स्पर्श ही काफी है
इसमें प्रतिस्पर्धा भी नहीं होती
न जोड -घटाना होता है
किसने क्या लिया
किसने क्या दिया
इसमें मत उलझिए
उसे महसूस करें
खुले दिल से बांटे
दानदाता बने
लेनदार नहीं देनदार
तब देखे
सब कुछ सुखद होगा
No comments:
Post a Comment