सुनना और अच्छा सुनना
किसे अच्छा नहीं लगता
अपनी प्रशंसा अपनी तारीफ
अलोचना तो किसी को भी नहीं भाता
हम इंसान जो है
हमेशा प्रशंसा ही मिले
यह जरूरी तो नहीं
जीवन के हर एक मोड़ पर इन दोनों से गुजरना ही है
आप चाहे या न चाहे
एक ही काम के लिए दोनों तैयार रहते हैं
प्रशंसक के साथ आलोचक भी
इसको सहज भाव से स्वीकारने में ही समझदारी
यह तो होना ही था
कुछ तो लोग कहेंगे ही
उनको आप चुप नहीं कर सकते
आपका काम आपकी उपलब्धि
आपकी तारीफ करेगा
तरक्क़ी के राह में रोड़े भी तो आएगे
यह मत भूलिए
हर कोई आपका शुभचिंतक नहीं हो सकता
द्वेष और ईर्ष्या से ग्रसित भी
आपकी उन्नति
आपके अपनो की ऑखों में चमकती है
दूसरों को तो खटकेगी ही
तब सब छोड़कर
विश्वास ,लगन और मेहनत से लग जाइए
प्रशंसक आपकी प्रशंसा को तैयार
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