हिन्द की हिन्दी
लगती बहुत प्यारी
जोडती है दिलों को
करती नहीं कोई भेदभाव
जो भी इसको अपनाता
उसकी ही हो जाती
तोड मरोड़ कर किसी भी लहजे में
वह ढल जाती
अंजानो के बीच रिश्ता कायम करती
जनसाधारण की भाषा है यह
हर आम आदमी परिचित इससे
नहीं कोई इससे अंजान
ज्यादा न सही थोडा ही सही
सब तक यह पहुंची जरूर
यह किसकी मजबूरी नहीं
स्वेच्छा से स्वीकृत है
जब कुछ न समझ आता
तब अपना दामन पकडा देती
सबका सहारा बनती
बातचीत का माध्यम बनती
सडक से लेकर महलों तक
सबमें इसका वास
है बहुत सरल
नहीं है इसमें कोई क्लिष्टता
लिपि इसकी देवनागरी
जो है सब पर भारी
यह है हिन्द की पहचान
हिंद की हिन्दी लगती बहुत प्यारी
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