Tuesday, 10 September 2019

यही तो जीवन का सार

जीवन नदी की भांति
बहता ही रहता है
इसका कोई ओर छोर नहीं
किनारा का तो पता नहीं
इसकी नैया डोलती ही रहती है अनवरत
कभी मंझधार में कभी किनारे के पास
पहुंचती कभी नहीं
इसका गंतव्य तो इसे ही नहीं मालूम
डूबते ,उतराते ,बल खाते ,लहरों संग अठखेलियां करते
नित नया अनुभव
नित नई कल्पना
नित नई उडान
नित नए सपने देखना इसका स्वभाव
उसी में गोते लगाती रहती है जिंदगी
आशा और विश्वास ही इसका बल - संबल
कुछ तैरने में माहिर
कुछ डूब जाते हैं
कुछ पार करने की जी जान कोशिश में
आखिर कब अंत इसका तो पता नहीं
हाँ बहना इसका स्वभाव
जहाँ रूकी वहाँ सडी
चलते रहना
बहते रहना
कुछ कहते रहना
कुछ करते रहना
बैठेना नहीं
थकना नहीं
हारना नहीं
प्रयासरत रहना
यही तो जीवन का सार

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