मन में अजीब सी हलचल
हर वक्त मन अतीत में भागता दौडता
थक जाती हूँ कभी-कभी
ऐसा क्यों हुआ
ऐसा क्यों कहा
ऐसा क्यों किया
इन सब पर बस तो था नहीं
बस कुढते रहे
इसमें कुछ अपने थे
कुछ बेगाने भी
कुछ हितैषी भी
कुछ दुश्मन भी
कुछ प्यार करने वाले
कुछ ईर्ष्यालु भी
न उनको जवाब दिया
न माफ किया
बस स्वयं को परेशान किया
नतीजा तो कुछ भी नहीं
उनको तो याद भी नहीं
उसी बात को याद कर हम दुखी होते रहे
कुछ है कुछ दुनिया से रुखसत कर गए
कुछ समय के साथ बिछुड भी गए
उनकी छाप जो पडी है
वह हठीली जाती भी नहीं
अब तो हमारे दिन भी कुछ ज्यादा बचे नहीं
अर्थी उठने से पहले इन विचारों से ऊपर उठ जाऊं
सब भूल ईश्वर में रम जाऊं
अब शक्ति नहीं बची है
अब शांति चाहिए
अंदर - बाहर
यह तब संभव जब अंदर का तूफ़ान थमेगा
सब कुछ भुलाना होगा
माफ करना होगा
स्वयं को भी ,अपनो को भी
दूसरो को भी ,दुश्मनों को भी
चिरस्थायी तो कुछ भी नहीं
जब जीवन ही नहीं
तब उससे जुड़ा यह अतीत क्यों
सब नश्वर है
तब सारी कटुता को नष्ट-भ्रष्ट कर दे
निर्विकार और निर्मल जीवन जीए
चलो सब भूल जाए
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