श्राद्ध तो जुडा है श्रद्धा से
अपनो के प्रति श्रद्धा और विश्वास
उनका मन से आभार
कम से कम वर्ष में पन्द्रह दिन
बहुत एहसान उनका हम पर
उन एहसानों का एहसास होना जरूरी
कृतघ्न नहीं कृतज्ञ बनना है
वर्तमान पीढ़ी को भी बताना है
हमें किसी को भूलना नहीं है
कम से कम इसी बहाने उनको याद भी रखना है
उनकी विरासत
उनकी मेहनत
उनका प्यार
उनका त्याग बलिदान
सब कुछ
जब सब उनकी बदौलत
तब उन्हें मन से धन्यवाद दे
और कामना करें
साल में एक बार आते रहे
अपनी कृपा बरसाते रहे
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