गोडसे और गांधी
राम और रावण
कंस और कृष्ण
यहाँ एक धर्म और एक अधर्म का प्रतीक
समानता यही थी
सब भक्त थे
रावण और कंस की शक्ति उनकी भक्ति से मिली थी
गोडसे ने गोली के पहले प्रणाम किया बापू को
अहिंसा के पुजारी को मारने के लिए हिंसा अस्त्र
कंस ने तो हिंसा की पराकाष्ठा ही कर दी
नवजात शिशुओं की हत्या
रावण जैसा महाज्ञानी सीता को ही हर लाया
पर दोष क्या एक ही का था ??
सुपर्णेखा का नाक और कान काटा जाना
वह भी तो नारी थी
देवकी को बिदा करते समय भविष्यवाणी
और अपनी जान की रक्षा के लिए उसके शिशुओं की हत्या
गांधी तो महात्मा थे
बापू का संबोधन दिया गया था
पर वही बापू अपनी संतानों में भेदभाव कर रहा था
किसी एक का पक्षधर बन रहा था
अपने धर्म के लिए गोडसे को यह अधर्म करना पडा
इतिहास तो लिखा जाता है
उसमें दोनों पक्षों की भागीदारी होती है
महाभारत में पांडव बिल्कुल सही थे
ऐसा तो था नहीं
अन्याय तो हुआ था
वह अन्याय देवव्रत के साथ हुआ था
जिससे उनको भीष्म प्रतिज्ञा लेनी पडी
फिर भीष्म ने काशी नरेश की कन्याओ के साथ किया
धृतराष्ट्र के साथ हुआ
अंधा होने के कारण गद्दी पांडु को
दुर्योधन इसी का प्रतिफल था
और युद्ध में तो जमकर अन्याय हुआ
मर्यादा तोड़ी गई
तभी तो गुप्त जी ने लिखा है
टुकड़े टुकड़े बिखर चुकी मर्यादा
उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है
पांडव ने कुछ कम
कौरव ने कुछ ज्यादा
गोडसे की गांधी जी से कोई निजी दुश्मनी तो थी नहीं
वह ईश्वर भी नहीं था राम और कृष्ण की तरह
पर इस कलियुग में हिंदू धर्म को रक्षा के लिए
उसने एक महात्मा की हत्या की
बहुतों को वह सही लगता है
बात तो नजरिये की है
अब तो खुलकर लोग उसका पक्षधर हो रहे हैं
पर हिंसा तो हिंसा ही है
कानून की नजर में अपराध है
युद्ध और कत्ल किसी समस्या का समाधान नहीं
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