दीपावली का आगमन हो रहा है
खुशियों का त्योहार
रोशनी का त्योहार
घर को झाडा पोछा जा रहा है
रंग रोगन लगाए जा रहे हैं
पुरानी वस्तुओं को बाहर फेंका जा रहा है
बरसों से पडे कबाड़ को निकाला जा रहा है
यह तो हुई घर की बात
पर हमारे शरीर के अंदर भी मनरूपी घर है
उसका क्या ??
बरसों से कटु स्मृतियों को सजा कर रखा है
अंधेरा फैला कर रखा है
कबाड़ जैसी फालतू बातों को जगह दी है स्पेशल
रोशनी को तो आने ही नहीं दिया जाता
बस अतीत के कडवाहट को लेकर बैठे हैं
जब ऐसा लगता है कि
वह भूल रहा है
तब फिर झाड पोछ कर चमका दिया जाता है
ताकि उदासी और अवसादी में घिरे रहे
यह इंसानी फितरत है
सब कुछ साफ और चमकदार
पर मन के किसी कोने में धूल जमी हुई
उसको साफ करें
भूल जाय कडवाहट
माफ कर दे लोगों को स्वयं को
जो अच्छी स्मृतियाँ है
उसे फिर झाड पोछ कर चमका ले
मन का नए सिरे से रंग रोगन करें
कुछ नया भरे
कुछ नया करें
खुशियों को जम कर बांटे
किसी के ऑसू पोछे
उसके चेहरे पर मुस्कान लाए
प्यार के दीप जलाए
अपनों को करीब लाए
पुरानी बातों में क्या रखा है
जो बीत गई वह बीत गई
आने वाले कल का स्वागत करें
फुलझड़ियों की तरह हंसी के ठहाके लगाएं
इस दीपावली को शानदार बनाए
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