सत्ता क्या क्या नहीं कराती
निस्वार्थ भाव के नेता मिलना मुश्किल
सभी को गद्दी चाहिए
यहाँ कोई राम नहीं है
जो छोड़ दे
साम ,दाम ,दंड ,भेद
सब आजमाना है
धृतराष्ट्र की तरह सत्ता मन में समायी है
वे तो अंधे थे
यहाँ तो खुली ऑखों से यह सब हो रहा है
जनता सब देख रही है
भलीभाँति समझ रही है
वह अनिश्चितता की स्थिति में है
क्योंकि इसका असली कारण तो वही है
क्यों कोई पार्टी बहुमत में नहीं आई
जनता का विश्वास खत्म हो गया है ??
मिल जुलकर सरकार बनाएंगे
कब तक मिलेंगे
यह मिलाप होगा या नहीं
किससे होगा
कब होगा
सत्ता पर आसीन कौन होगा
मिलाप कब तक चलेगा
क्योंकि यहाँ बात महाराष्ट्र की नहीं है
महाराज की है
सत्ता की है
सबको उसका स्वाद चखना है
सामने पकवान हो
तब कौन उससे वंचित रहना चाहेंगा
फिर राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है
न दुश्मन
राजनीति तो अवसरवाद से चलती है
महाराष्ट्र का यह संग्राम पिछले अठारह दिनों से चल रहा है
इतने समय में तो महाभारत भी खत्म हो चुका था
भगवान कृष्ण गीता का उपदेश देकर युद्ध के लिए तैयार कर चुके थे
परिणाम क्या हुआ
यह भी सब जानते हैं
पांडवों ने भी राज्य सौंप हिमालय की तरफ प्रस्थान किया
तब क्या यह नहीं हो सकता
कि राष्ट्रपति शासन लागू हो शायद
शायद फिर एक बार और चुनाव हो
कुछ कहा नहीं जा सकता
यह महाराष्ट्र का महाभारत है
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