सारी शिक्षा विवाह की वेदी पर चढ गई
सारी प्रतिभा घूंघट के ओट तले दफन हो गई
कारण छोटा नहीं
बहुत बडा है
ब्याह करना है
घर बसाना है
बच्चे पैदा करना और परिवार चलाना है
घर की धुरी है वह
वह आगे कैसे जाएंगी
पिता ने पढाया लिखाया
गर्व से कहा
यह मेरी बेटी है
पर जहाँ विवाह की बात आई
वह लाचार हो गए
इतनी भी हिम्मत नहीं थी
समाज से अलग उठकर कदम रखें
इनके साथ ही जीना था
बेटी सौंप दी भाग्य के भरोसे
उन हाथों में
जिनके लिए औरत एक गुडिया हो
जैसा चाहें वैसा नचाए
प्यार के नाम पर छल
बस उसे बांध कर रखना है
रोटी ,कपडा और मकान दिया
नाम दिया ,इज्जत दी
जिंदगी भर के लिए गुलाम
उसकी आशा - आंकाक्षाओ से कोई सरोकार नहीं
वह तो उस बंद तोते की तरह जो सोने के पिंजरे में कैद हो
उसका मनपसंद अमरूद और हरी मिर्च खिलाया जाय
बदले में जो बोले वही बोल वह भी बोले
यही नियति होती है
हम भारतीय महिलाओं की
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