Thursday, 2 January 2020

बस और कुछ नहीं

आज का सूरज तुम्हारे यहाँ भी निकला
हमारे यहाँ भी
फूल यहाँ भी खिले वहाँ भी
चिडिया चहचहाई
यहाँ भी वहाँ भी
हवा सरसराई
यहाँ भी वहाँ भी
पेड़ लहलहाए
यहाँ भी वहाँ भी
प्रकृति ने अपना कार्य अनवरत जारी रखा
बिना भेदभाव के
रात तुम्हारी भी कटी हमारी भी
फर्क इतना है कि
तुम्हारा सुकून से हमारा चिंता से
तुम्हारा बढिया से आलीशान घर में
हमारा साधारण दो कमरे में
तुम्हारा आरामदायक बिस्तर में
हमारा ओढने बिछाने लायक
तुम्हारा आरामदायक
हमारा जुगाड़ करते
तुम्हें विरासत में मिला सब
हमने अपने हाथों से निर्माण
हममें और तुममें
कभी समानता रही ही नहीं
तुम संपत्तिशाली ,नामचीन
हम आम लोग
फिर भी हम जो भी है
जैसे भी है
अपने दम पर
कोई गम नहीं
जो कटा जैसा कटा
जाना तो दोनों को वहाँ है
उसमें कोई भेदभाव नहीं होगा
जन्म और मृत्यु के बीच
जो है वह हम हैं
जब आए हैं तब जाना भी है
किसी के पीछे भीड चलेगी
किसी के पीछे चंद जन
पर चार कंधों पर
तुम्हारा भी यही रह जाएंगा
हमारा भी
तुम्हारी भी कटी हमारी भी
तुम्हारी हंस कर हमारी रो कर
पर जाना है
शांत होकर
तब क्यों इतराना
घमंड करना
सब मिट्टी में
तुम्हारी भी
हमारी भी
तुम खुश रहो अपने घर
हम खुश रहे अपने घर
बस कभी मिलो
तब हंस कर दुआ सलाम कर लेना
हाल चाल पूछ लेना
बस और कुछ नहीं

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