जो बोओगे
वह काटोगे
जैसा कर्म
वैसा फल
परिणाम तुरंत
यह जरूरी नहीं
कभी समय लगा देता है
विलंब से ही सही
मिलता जरूर है
यह कुदरत का नियम है
वह इसमें कोताही नहीं करता
जो विषबेल लगाई है
वह फल फूलकर लहराता अवश्य है
वैसे भी इंसान कभी कुछ भूलता नहीं
समय आने पर सूद सहित वापस करता ही है
स्वरूप अलग-अलग हो
क्षमा ,घृणा ,बदला
समझा अवश्य देता है
सावधानी बरतनी होगी
रिश्तों में
कार्य में
स्वभाव में
व्यवहार में
यहाँ स्थायी कुछ नहीं
यही शरशैया पर सोये भीष्म भी
यही गांडीवधारी के हाथ से धनुष छीनने वाले भील भी
यही एकलव्य भी
यही अंबा भी शिखंडी के रूप में
यही महाभारत के केशव भी गांधारी के श्राप से ग्रसित
यही लंकापति रावण भी
सबको भुगतना पड़ा
एक ही जीवन
यही सबका अनुभव भी
हर कोई को समय ने बताया
वह किसी का सगा नहीं
फिर चाहे
वह सुदर्शन चक्रधारी ही क्यों न हो
ईश्वर ने भी मानव रूप धारण किया
तब तो कर्म ने उन्हें भी नहीं बख्शा
तब सामान्य मानव की क्या बिसात
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