कुछ हो चाहे जाय
पर यह बात तो है
देशवासी अपने प्रधानमंत्री को कितना चाहते हैं
सबने उनकी बात मानी
पर शायद जो सोचा था
वैसा हुआ नहीं
मोदीजी ने भी नहीं सोचा होगा
जनता इस तरह से करेंगी
ढोल ताशे और गरबा करेंगी
यही वोट देनेवाली जनता भी है
वह कब क्या करने वाली है
यह सबकी समझ से बाहर
यह भारत का लोकतंत्र है
किस तरह समझाना
यह भी सीखना होगा
कहा कुछ करा कुछ
कर्फ्यू की ऐसी की तैसी
थाली बजी ताली बजी
जयघोष हुआ
चीन को कोसा
करोना को गो कहा
सबने समझ लिया
करोना सचमुच भागा
करोना भागा
ऐसे नहीं चलेगा
जब लाठी बजेगी
डंडे पडेंगे
तब जाकर कुछ असर होगा
ढम ढमा ढम बिना
कोई उत्सव पूरा नहीं
तब इन पर ढम ढमा ढम हो
तब कुछ बात बने
पुलिस और प्रशासन कठोर बने
बहुत धज्जियां उड़ाई इनकी
अब तो लाठी भांजे
तब जाकर यह मानेगे
डर जरूरी है
नहीं तो फिर
हर कोई यही कहेगा
मेरी मर्जी
मैं यह करू
मैं वह करू
चाहे जो करू
क्या करेंगा करोना
क्या करेंगा और कोई
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