Monday, 13 April 2020

सब दिन रहते न एक समान

आज कौन सा वार है
यह कोई मायने नहीं रखता
सब वार एक समान
सब है एतबार से
अब न शुक्रवार का इंतजार
न सोमवार का
जितना सोना है सोओ
जब चाहे उठो
न रात न दिन
सब हुए एक समान
अब न जाने की जल्दी
न कोई आपाधापी
हर दिन है इतवार
जिसका बेसब्री से रहता था सबको इंतजार
अखबार भी बंद
अब कोई संडे का विशेष कॉलम पढने को जी नहीं मचलता
अब विशेष डिश बनाने की जरूरत नहीं
अब तो हर वक्त खाने की ही सोचना है
वह गुजरा वक्त याद आता है
वह पंक्तियाँ भी याद आती है
सब दिन न रहते एक समान

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