पुरूष बेचारा
घर का न घाट का
बचपन में माँ कहती है
तुझे कुछ समझ नहीं आता
शादी होने के बाद पत्नी कहती है
तुमको कुछ समझ नहीं आता
बूढ़े होने पर बच्चे कहते हैं
आपको कुछ समझ नहीं आता
अब उसको क्या समझना है
दही और धनिया का भाव
इमली और अचार की खरीदारी
बर्तन धोने और झाडू लगाना
नाश्ता और खाना बनाना
ऑफिस की जिम्मेदारी अलग
वह यह समझता तो
पढता कैसे
नौकरी के लिए धक्के खाता कैसे
घर का भार उठाता कैसे
सबकी ख्वाहिशे पूरी करता कैसे
औरत काम करें या न करें
मर्द को तो करना है
वह कैसे घर बैठ सकता है
अब तो जमाना यह आ गया है
बहू को भले कुछ न आता हो
वह काम करे या न करें
पर सास को जरूर कहेंगी
आपने सिखाया क्या है
यह नहीं सोच रहे
अच्छा इंसान बनाया है
आत्मनिर्भर बनाया है
एजुकेटेड बनाया है
सबकी इज्जत करना सिखाया है
पर यह सब बातें तो बाद की
पुरूष जाति की सबसे बडी त्रासदी कि
उसके साथ किसी की सहानुभूति नहीं
वह परफेक्ट होना चाहिए
घर काम के साथ साथ कमाना भी चाहिए
वह करता भी है यह सब
तब भी आए दिन सुन ही लेता है
कुछ नहीं आता
कुछ नहीं कर सकते
कुछ समझता नहीं है
कभी-कभी तो पत्नी और आगे बढ जाती है
बेवकूफ और गधा भी कह डालती है
बेचारा पुरूष
वाकई तरस आता है तुम पर
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