Saturday, 23 May 2020

हमारी चाची चली गई


हमारी चाची चली गई
यकीन तो नहीं होता
जीती जागती सजी धजी
अब भी वैसे ही दिखती है
लगता है कहती हो
आवा बबुनी बैठा
का खयबु ,चाय पीयबू
फिर हंसती हुई
कुछ बोलती है
अपनी बातें करने लगती है
हर काम में साथ देनेवाली
मजबूती से खडी रहने वाली
वात की बीमारी
फिर भी कार परोज में गजब की स्फूर्ति
जिम्मे काम लगा दो
फिर हो जाओ निश्चिंत
भरोसा था
यह तो संभाल ही लेंगी
अपनी शादी से लेकर बेटे की शादी तक
हर फर्ज निभाया
पूजा पाठ और विधि विधान
कर्जदार हूँ मैं
माँ नहीं तो क्या चाची तो है बहिनी
जब मन करें
भुजही आ जायल करा
उनका बात बात पर हंसना
हाथ मारना
जिसने कभी अपने को उम्र दराज नहीं समझा
हमेशा जवान दिखने की कोशिश की
वह बुढापा आने से पहले हो रूखसत कर गई
कितना विश्वास था
बाबूजी का मरने से पांच मिनट पहले ही उनको ही फोन करना
तुम्हारे पर विश्वास है
सब संभाल लेना
वही संभालने वाली तारा चाची अब नहीं रही
अब वह दूसरी दुनिया का तारा बन चुकी
यहाँ सबको भंवर में छोड़ वहाँ झिलमिलाने के लिए चल दी
सबकी आशा को निराशा में बदल अकेली ही निकल गई
मायके से ही डोली , मायके से ही अर्थी
मरणासन्न पिता को देखने गई
उनके साथ ही चली गई
आज ऑखों से ऑसू बह रहे
यादों में सब पिछली बातें घुमड रही
आज हमारी चाची हमें छोड़ कर चली गई
एक बडे का साया सर से उठ गया
हमें अनाथ कर गई
हमारी चाची चली गई

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