अब भी संभल जाओ
मंदिर और मूर्ति को छोड़ अस्पताल निर्माण करो
पूजाघर कम रहेंगे तब भी कोई बात नहीं
ईश्वर के दर्शन कर लेंगे
जीवित रहेंगे तभी न
आज अस्पताल खुले है
पूजास्थल बंद है
अस्पताल की संख्या कम पड रही है
हर कस्बे , गाँव और कुछ कुछ दूरी पर धार्मिक स्थल
पर हर जगह अस्पताल नहीं
जनसंख्या के अनुपात से अस्पताल नहीं के बराबर
महान विभूतियों के स्टेच्यू बनाए जा रहे हैं
करोडों रूपए खर्च
भव्य से लेकर छोटे छोटे तक
न जाने कितने
जिन पर पक्षियों का बसेरा
बीट पडे हुए
जो उनका भी अपमान
इससे अच्छा तो मानव सेवा की खातिर
उसी जगह में उनके ही नाम से छोटा दवाखाना होता
आज संकट काल में महसूस हो रहा है
किसकी आवश्यकता है
ऐसा नहीं कि पहले से नहीं है
बीमार होने पर अस्पताल में कैसे एडमिट होंगे
कौन सा और कितना खर्चीला
लेंगे कि नहीं
यह भी सोचना पडता है
हर एक दो किलोमीटर के दायरे में अस्पताल हो
बीमार होने पर यह चिंता न करनी पडे
स्वस्थ रहेंगे तभी ईश्वर का दर्शन भी करेंगे
जिंदा रहेंगे तभी पूजा-पाठ भी करेंगे
कहते हैं न
भक्त से ही भगवान है
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