Friday, 1 May 2020

शायद इसी का नाम जिंदगी है

बहुत दर्द होता है
जब बडो के कंधों पर छोटा जाता है
वह पिता कितना बदनसीब होता है
जिसको अपने बेटे को कंधा देना पडा हो
वह भाई पर क्या बीतती होगी
जो उसके संग खेल कर बडा हुआ हो
उस माँ पर क्या बीतती होगी
जब अपने कलेजे के टुकड़े को इस तरह देख
क्या उसका दिल सही सलामत रहेगा
उस बहन पर क्या बीतती होगी
जिनके साथ लडे झगड़े हो
हर छोटी छोटी बात को साझा किया हो
रिश्ता कोई भी हो
पति-पत्नी
बहन - भाई
भाई - भाई
बहन - बहन
या अपना कोई अजीज
वह दोस्त भी हो सकता है
पडोसी भी हो सकता है
दिल तो टूटता है
बस आवाज नहीं आती
अगर पहले से पता चल जाय
यह इस तरह बिदा होगा
तो हम कितना संभल कर रहते
ताउम्र हम लडते झगड़ते
डांटते फटकारते
अपनी इच्छा उन पर थोपते
अपना गुस्सा निकालते
शायद कदर भी नहीं
प्रेम न हो ऐसा नहीं
वह तो भरपूर
पर दुनियादारी में वह दिखता नहीं
जाने के बाद लगता है
यह क्या हुआ
क्यों हुआ
पर जाने वाला शख्स तो आने से रहा
जी करता है
एक बार वह आ जाएं
सारे गिले शिकवे दूर कर दे
पर वह संभव नहीं
शायद इसी का नाम जिंदगी है

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