मैं इतना उपेक्षित
इतना तिरस्कृत
कोई मुझे पसंद नहीं करता
सब मुझे बोझ समझते हैं
यहाँ तक कि छुपाया जाता है
रसोईघर में प्रवेश की मनाही
ईश्वर के दरबार में भी यही हाल
शायद यह नहीं समझते
मैं मानव जाति के लिए वरदान
मुझसे ही सृष्टि
मैं नारी जाति का अभिन्न भाग
मेरे बिना हर नारी अधूरी
हर कोई यौवनावस्था में प्रवेश करने पर मेरी बाट जोहता
पुरूषो के सामने या और सदस्यों के सामने उच्चारण करने में भी शर्म
ऐसा नहीं कि कोई मुझसे परिचित नहीं
फिर भी हेय दृष्टि से देखना
यह परंपरा सदियों से
आज बदलाव आ रहा है
तब मुझे भी अच्छा लग रहा है
मैं किसी की उन्नति में बाधक नहीं बन रहा
महीना , मासिक धर्म , पीरियड इनसे मैं जाना जाता
अब धारणा बदल रही है
सोच बदल रही है
स्वीकार किया जा रहा है
ऑसू का स्राव , स्वेद का स्राव
वैसे ही रक्त स्राव
यह तो शरीर की नैसर्गिक क्रिया है
इसमें छुपाना
शर्माना
कोई वजह नहीं
इसे सामान्य भाव से स्वीकार करना चाहिए
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