आज मेरी सहायिका सबसे बडी
हमारी कामवाली बाई याद आ रही है
अब वह क्यों ??
कोई समझे न समझे
वह बराबर समझती
कोई काम करें या न करें
वह बराबर करेंगी
एक दिन छुट्टी ले लेती
तो लगता मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा
दूसरे दिन आतुरता से उसकी प्रतीक्षा
देर से आने पर कुछ सुना भी देना
पर उसका अपना काम करना
कभी जवाब देना
कभी अनसुनी करना
ज्यादा कभी काम हो जाय
मेहमान आ जाएं
तब भी ना नुकुर नहीं करना
कभी कुछ पुराने कपडे दे दिये
खुशी से फूला न समा एक्स्ट्रा काम कर देना
खाने को दे दो
तब चेहरे पर देखो रौनक
उसका भी अपना घर परिवार
उसके भी बाल बच्चे
वह अपना घर तो संभालती
हमारा भी घर संभालती
एक अजीब सा नाता बन गया उससे
वह अपनी लगती है
तभी तो आज भी हर रोज याद आती है
लाकडाऊन न होता तो दौड़ी चली आती
अब तो प्रतिबंध लगा है
हमारे मन में भी डर समाया है
कहने को तो कामवाली बाई है
पर कामकाजी हो या गृहिणी
सबकी सहायिका है
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