बहुत कर ली उठा पटक
बहुत कर ली सबकी परवाह
अब तो छोड़ो यह सब
सुस्ताओ दो पल
संघर्षों को भी दो विराम
बचे खुचे दिन है
अब तो कर लो आराम
बचपन तो बीता
जैसा बीता ठीक ही बीता
माता पिता के काम में हाथ बटाते
भाई बहनों की देखभाल करते
अनुशासित और डाट डपट करते
युवावस्था आते ही
लग गए
कॅरियर और पढाई में
कुछ सपने पाल रखे मन में
सब हुए धराशायी
जब बंध गए ब्याह की डोर में
खैर फिर भी जीवन में उत्साह था
आशा और उमंगो का पारावार था
सच का सामना होते ही
गिरे धडाम औंधे मुंह
तब भी जीने का जज्बा था
अब असली परीक्षा शुरू हुई
जीवन की
बहुत काम किया
कोटकसर कर घर निर्माण किया
बच्चो की परवरिश कर
उन्हें लायक बनाया
यह सब करते करते
अपने को भूल गई
आशा - आंकाक्षा
इच्छा - अनिच्छा
सब कहीं अदृश्य
शौक से तो कोसों दूर
हंसना और खिलखिलाना भूल गए
परिवार और घर बनाते बनाते
सहेजते सहेजते
स्वयं को न सहेज पाई
कभी टूटी
कभी बिखरी
कभी मन मारा
इसी तरह आ गई
जिंदगी इस मोड
अब इस मोड़ पर थमना है
सबको बस
अब और नहीं
यह कहना है
नहीं किसी की करनी है परवाह
जो करना है
अब अपने मन की करना है
अपने मन की सुनना है
बहुत सुन चुके सबकी बातें
सबकी झेल चुके मनमानी
अब स्वयं के मन को भी मुक्त करना है
बस अपने मन के साथ रहना है
No comments:
Post a Comment