Monday, 8 June 2020

तुम्हारा और मेरा मिलन

तुम तो ऊपर चले गए
उस दुनिया और जहां में
जहाँ से लौटना मुश्किल
तुम तो जाना नहीं चाहते थे
मुझे छोड़कर
पर नियति के आगे तो तुम्हारा बस नहीं
कितना प्रेम था
मुझसे जुदा होना तुम्हें कभी गंवारा नहीं
आज भी बात वही होगी
इतना तो विश्वास है
तुम ऊपर से हमें देखते होगे
कभी तारे बन
कभी बादल बन
आज यह बादल बरसे है
तब इसकी बूँदो में मुझे तुम्हारा एहसास हुआ है
यह बूंदे जब बरसी
तब हथेलियों में लेकर महसूस किया
लगा तुम्हें और मुझे मिला रही है
रह रहकर मेरे केश उडा रही है
भिगो रही है
मस्ती कर रही है
मेरे गालों को सहला रही है
अब यह बूंदे ही तो है
जो तुमको और मुझको मिला रही है
तुम उस जहां में
मैं इस जहां में
तब भी इस दूरी को पास ला रही है
चलो यही सही
मान लेते हैं
हम दूर होकर भी कितने पास पास हैं

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