आज पूरा भारत आत्मनिर्भर
सब काम स्वयं
न कामवाली न कामवाला
घर से बाहर
बनिये की दुकान से लेकर घर में झाडू- पोछा करने तक
सामान ला रहे हैं
साफ सफाई कर रहे हैं
खाना बना रहे हैं
कपडे धो रहे हैं
इस्तरी कर रहे हैं
बर्तन मांज रहे हैं
चाय बना रहे हैं
केक और पेस्ट्री बना रहे हैं
पाव और ब्रेड भी
सब काम कर रहे हैं
यहाँ तक कि बाल भी काट रहे हैं
अगर ऐसे ही रहा तो
इन बेचारों का क्या होगा
इनकी रोजी रोटी कैसे चलेगी
एक आदमी से न जाने कितने लोग जुड़े रहते हैं
जीविका चलती है
ड्राइवर धोबी नाई
महरी बावर्ची माली
सूतार इलेक्ट्रिशियन
ऐसे न जाने कितने
पंडित और पंडो का भी यही हाल
ऐसी आत्मनिर्भरता नहीं स्वीकार
समग्र समाज
समस्त कारोबार
सब जुड़े हुए
उनकी अहमियत मुश्किल घडी में ही पता चलती है
समाज किसी एक से नहीं
परिवार किसी एक से नहीं
न जाने कितनों का योगदान
तब जाकर भव्यता खडी होती है
इसलिए समष्टिवादी बने व्यक्तिवादी नहीं
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