सुबह होती है
रात होती है
फिर अगले दिन वही सिलसिला
यह तो पहले भी होते थे
सही है
पर अब वह पहले जैसी बात नहीं
डर के साये में है जिंदगी
हर शख्स डरा हुआ
कब क्या हो
कहा नहीं जा सकता
कितने भी जतन करो
मास्क लगाओ
सेनिटाइज करो
सोशल डीशस्टिंग रखो
फिर भी
क्या जिन्होंने इसका प्रकोप झेला है
उन्होंने क्या इसका पालन नहीं किया ??
जान तो सबको प्यारी होती है
अपने लोग भी प्यारे होते हैं
अपने से ज्यादा फिक्र उनकी होती है
कोई भी यह जान बूझकर करना नहीं चाहेगा
फिर भी
हो गया
वह अमित शाह हो या अमिताभ बच्चन
सर्व सामान्य हो या गरीब
कुछ तो ऐसे ही घूमते हैं
बिना डर के
फिर भी वे महफूज हैं
तब क्या किया जाय
कितने दिन घर में ही बैठे रहेंगे
जरूरत है तो निकलना ही है
काम भी करना है
नहीं तो पेट पर बन आएगी
जो गए गाँव
वह वापस लौट रहे हैं
कैसे गुजर बसर होगा
सब अपनी जान हथेली पर लेकर बैठे हैं
ऐसा डर
इतना खौफ
पहले तो कभी नहीं दिखाई दिया
क्या कहा जाय
हर शख्स डरा हुआ
कब कहाँ से यह वायरस आ जाएं
जानलेवा बन जाए
गुलजार जिंदगी खो गई जाने कहाँ
दोष किसका पता नहीं
किससे आया
किससे मिला
वह कैसे जान सकते हैं
जब स्वयं को ही पता नहीं
यह क्या है
सामान्य बीमारी या फिर वायरस का प्रकोप
अंजान है सब
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
No comments:
Post a Comment