आज़ श्रावणी पूर्णिमा व सावन माह का अन्तिम सोमवार की युति को द्विगुणित करता हुआ भाई -बहन के स्नेह,प्रेम,आदर, अनुराग, दायित्व और समर्पण को समेटे हुए रक्षाबंधन का पर्व आया है।यह महज एक सूत का धागा हि नहीं वरन् इतना मजबूत बन्धन है जो दोनों पक्षों पर दायित्वों का ऐसा
गुरुतर भार रखता है जिसका निर्वहन करना सौभाग्य व गौरव माना जाता है। इस पर्व की महत्ता से विदित कराने के आप को हम द्वापरयुग में लिये चलते हैं । जब युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का समापन हो रहा था तब शिशुपाल के गालियों के सैकड़ा पूरा होने पर वासुदेव कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया। उस समय कृष्ण जी की उंगली से रक्त बहता देख कर द्रौपदी ने तत्काल अपने राजसी वस्त्र को फाड़ कर कृष्ण जी की उंगली पर बांध दिया।यह था द्रौपदी का स्नेह व समर्पण, जिसने वासुदेव कृष्ण पर द्रौपदी की रक्षा का दायित्व रोपित किया और उस दायित्व का निर्वहन प्रभु ने तब किया जब द्रौपदी अपने विश्वविख्यात महाबली पांडवों से निराश हो चुकी थी।
रक्षाबंधन का एक उल्लेखनीय उदाहरण हुमायूं और कर्मावती के आख्यान में मिलता है जब कर्मावती ने युद्ध सकंट में हुमायूं को राखी भेजा और हुमायूं कर्मावती की रक्षा के लिए पूरी सेना लेकर दिल्ली से राजस्थान दौड़ा चला आया।यह है राखी की महत्ता व गुरूता जिससे एक विधर्मी तक विवश हो जाता है और भाई के दायित्व को इस मर्तबे से निभाता है कि हर कोई रश्क करेगा। आप सब से आग्रह है कि इस पर्व को उल्लास से मनाये, आप सब को रक्षाबंधन पर्व पर बहुत बहुत बधाई🙏
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