वह माँ थी
कैसे जाए
कहाँ जाएं
अपने जिगर के टुकड़े को छोड़कर
सहती रही
मार खाती रही
मन को घायल करती रही
ऑखों में ऑसू पीती रही
चुपचाप रही
वह माँ थी
केवल स्वयं का सोचती
तब तो कब का सब छोड़छाड चल देती
कभी-कभी मन में आया भी
इस शैतान का त्याग कर दो
इसके बच्चों से मुझे क्या लेना देना
उसका सरनेम है इनके साथ
पर वह कर नहीं पाई
अपने ही रक्त और मांस से जिसे सींचा
उसका त्याग नहीं कर सकती
पत्नी ही नहीं
माँ हूँ मै
इसके खातिर तो सब सहना है
नाम किसी का भी मिले
मुझमें ही तो समाया है वह
यही तो फर्क है
माता और पिता में
माँ छोड़ नहीं सकती
अलग नहीं हो सकती
वह सहन कर सकती है
करती भी है
पिता का सीना गर्व से चौडा होता है
उन्नति देखकर
माँ को फिक्र रहती
कुछ खाया कि नहीं
कोई परेशानी तो नहीं
उसके चेहरे के भावों को पढ सकती
अपनी वेदना को छुपा सकती
इतनी बडी अभिनेत्री
बेटा कुछ समझ ही न पाया
अंदर ऑसू बाहर मुस्कान
यही खेल खेलती रही जीवन में
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