करोना काल का बचपन
घर में रह गया बंद
न उछल कूद
न खेल कूद
न धमाल और मस्ती
न दोस्तों संग मटरगश्ती
न इधर-उधर भटकंती
न झूला न कबड्डी
न क्रिकेट न गिल्ली डंडा
न गोला न पाठशाला
न शिक्षक की डांट
न पनिशमेंट न सवाल
न शैतानियां न चहलकदमिया
बस घर में कैद
माँ पापा हर वक्त सर पर सवार
नहीं कोई बहाना न लफ्फेबाजी
सबकी पैनी निगाहें
नजरें गडाए
अब जाएं तो जाएं कहाँ
मुख पर लगा है मास्क
हरदम हाथ धोओ
परेशान है इन सबसे बचपन
इतनी पाबंदियां
लील जाएंगी मासूमियत
चंचलता है गायब
बचपना है नदारद
यह है करोना का प्रताप
जिसके कारण बचपन है बेकार
जीना है दुश्वार
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