पेड़ खडा था
हरा भरा था
खुश था
लहलहा रहा था
झूम रहा था
पंछी डोल रहे थे
पत्तियां सरसरा रही थी
सब खुश थे
अचानक कहीं से आवाज आई
कुछ लोग थोड़ी दूर पर खडे थे
कह रहे थे
इतना विशाल
अच्छी लकडी निकलेगी
उसका दाम लगाया जा रहा था
वह स्तब्ध रह गया
सोचने लगा
मुझे सीचकर
सुरक्षा कर
इतना बडा किया
क्या इसीलिए
इंसान कितना स्वार्थी
अचानक वह बोल पडा
काटकर क्या करोंगे
घर सजाएगे
कुर्सी , सोफा और दीवान बनाएंगे
पेड़ हंस पडा
सब आश्चर्य
और उस घर में रहेंगा कौन??
अगर मैं नहीं तो तुम भी नहीं
यही हाल रहा तो
बस पत्थर और सीमेंट के घर रहेंगे
पर सांस लेनेवाला कोई नहीं
मैं तो तुम्हारे बिना रह सकता हूँ
तुम मेरे बिना एक पल भी जी नहीं सकते
बरसों के साथी हैं हम
यह सिला
इसका परिणाम भयंकर
अब भी समय है
सचेत जाओ
घर रहेगा पर रहनेवाला कोई नहीं
कुर्सी - सोफा रहेंगे
पर बैठने वाला कोई नहीं
अपनी मृत्यु को स्वयं निमंत्रण देना
यह मनुष्य जैसे बुद्धिमान प्राणी से अपेक्षा नहीं
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