बेटी , बेटी होती है
वह दलित या उच्च जाति की हो
क्या फर्क पडता है
फर्क पडता है
सोच से
संस्कार से
नजरिया से
बेटी किसी की भी हो
उसके मान और सम्मान की जिम्मेदारी सबकी बनती है
हमारी बेटी हो
तुम्हारी बेटी हो
पडोसी की बेटी हो
अपनी सोच का दायरा बढाया जाय
उसे इंसान समझा जाए
बराबरी का दर्जा दिया जाए
अपराधी कोई भी हो
हेय नजर से नारी ही देखी जाती है
वह किसी की माँ
किसी की बहन
किसी की पत्नी तो है ही
एक नागरिक भी है
सभ्य सोसायटी में अपनी तरह रह सकें
जी सकें
उन्नति कर सकें
अपनों के और अपने सपने साकार कर सकें
वह तब होगा
जब बेटी सुरक्षित रहेंगी
उसे खिलौना न समझा जाए
उस पर राजनीति न की जाए
न्याय मिलें
सब प्रयत्नशील होंगे तभी यह संभव है
नारी पर अत्याचार
उसका परिणाम रामायण और महाभारत
राजघरानों की जब यह हालत
तब सामान्य नारी की क्या बिसात
यह परंपरा चली आ रही है
उसे ध्वस्त करना होगा
बेटी , बेटी होती है
वह दलित हो
वह ब्राह्मण हो
वह हिन्दू हो
वह मुस्लिम हो
वह गरीब हो
वह अमीर हो
है तो वह व्यक्ति ही
सम्मान से जीने का हक उसको भी है
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