सूचना देकर जाना किसी के घर
नहीं तो उनकी प्राइवेसी खंडित हो जाएंगी
यह एक नया कांसेप्ट आया है समाज में
एक समय था कि हमारे घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते
सोचना नहीं पडता था
जो भी आता उसका दिल से स्वागत किया जाता
आवभगत की जाती
पकवान न सही चाय ही सही पानी ही सही
वह प्रेम से पिलाया जाता
किसी की स्वतंत्रता का हनन नहीं होता
अरे यहाँ से गुजर रहे थे आ गए
जवाब मिलता था
आपका अपना ही घर है जब चाहे आ जाओ
अब तो अपनों को भी इत्तला देने का जमाना है
जज्बा तो कहीं पीछे छूट गया है
अब तो देखना पडता है
सुबह । दोपहर ।शाम
कौन सा वक्त सही रहेंगा
ताकि उन लोगों को परेशानी न हो
माना कि हर व्यक्ति व्यस्त है फिर भी
घर आया मेहमान आज भगवान नहीं बोझ समान है
लोग कन्नी काट रहे हैं
रिसोर्ट में समय बिता लेंगे अंजानो के साथ
पर अपनों के साथ नहीं
सब कुछ दिखावटी और औपचारिक
यहाँ तक कि रिश्ते भी
निभाना मजबूरी है नहीं तो कौन पूछता
तब घर भरा रहता था आगंतुकों से
और कोई न सही पडोसी ही सही
पर आज वह भी नहीं झांकता
शायद वह भी डरता है
हिचकता है
रिश्तेदार की तो बात छोड़िए
जब कोई आपको पहले से इत्तला दे
उस दिन शायद वह न आ सके
आपकी तैयारी और समय दोनों व्यर्थ
तब आप उसको ही कोसेंगे
ऐसी जहमत कौन पाले
आप अपने घर हम अपने घर
मिल लिया ओकेजन पर
औपचारिकता निभा ली
ऐसे में दिल नहीं मिलता है
वह भी यंत्रचलित सा हो जाता है
इतनी पाबंदियां तब रिश्तों में मिठास कहाँ से
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