कितनी तेज धूप
ऑखों को चुभती
आई थी धीरे से
हौले हौले
सुनहरी आभा फैलाए
पसरती गई
बढती गई
सब पर काबिज हो गई
अब तो जला रही है
तपा रही है
खडा रहना भी मुश्किल
यह छांव क्या देगी
शीतलता की तो अपेक्षा ही नहीं
अब तो लगता है
कब यह जाएं
यहाँ से विदा हो
अब इसका ताप सहा नहीं जाता
जल रही है
जला रही है
कब संझा हो
यह बिदा ले सबसे
कैसा भी हो
ताप तो असह्य ही होता है
वह बर्दाश्त नहीं
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