पंख काटने की कोशिश तो बहुत हुई
हार तो मैंने भी नहीं मानी
पंख फैलाकर उडने की कोशिश करती रही
थक भी गई उडते उडते
उडान भरना नहीं छोड़ा
कुछ विश्राम ले फिर उड चली
कभी किसी की ईष्या
कभी रोकटोक
कभी बाधा
कभी पंख कुतरने की कोशिश
यह सब भी होता रहा
परवाह नहीं की
न पंखों को विराम दिया
मंजिल पर जो पहुँचना था
बाधा का क्या है
आसमान की उडान भरना है
तब तो आंधी - तूफान के थपेडों को सहना है
गर्म धूप और सर्द कोहरा भी बर्दाश्त करना है
यहाँ तक कि पतंग की डोर भी खेल खेल में रास्ता अवरूद्ध कर देंगी
पंखों को लहू-लुहान कर देंगी
न जाने कितने विरोधी
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष
आज मुकाम हासिल है
देखने वाले देख रहे हैं
मन ही मन जल रहे हैं
हाँ मेरी यात्रा अभी बाकी है
अभी तो और उडान भरनी है
और ऊपर और ऊपर
आसमान को छूना है
पंखों को और फैलाना है
समेटना मेरी फितरत नहीं
आसमान में उडू
धरती से मोह बना रहें
दोनों के बीच मैं स्वतंत्र रह
जो चाहे जैसा चाहे वह भी करूँ
उडान भरना कभी न छोड़ू
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