प्रकृति तेरे खेल निराले
सुबह जिस सूर्योदय के आगमन का स्वागत
संझा समय उसी को रूखसत करना
सुबह-सुबह फूलों का खिलना
दूसरे दिन अपने आप ही गिर जाना
स्थायी नहीं कुछ भी यहाँ
सूरज की आभा भाती है
उसका जाना भी तो भाता है
सूर्योदय या सूर्यास्त
दोनों के सौन्दर्य को हम निहारते है
कैमरे में कैद करते हैं
फूल भी भाता है
उसका सौन्दर्य हमें आकर्षित करता है
उसको तब भी हम तोडते हैं
जिसका उपयोग है हमारे लिए
तब तक उसकी कदर
अन्यथा कचरे के ढेर में
जिस भगवान भास्कर की आतुरता से प्रतीक्षा
संझा को उनके जाने की भी
उदयाचल के सूर्य को अस्तांचल का रास्ता दिखा दिया जाता है
जन्म का स्वागत
मृत्यु का मातम
जिस शिशु को हाथ में उठा उसके लिए न जाने कितने जतन
न जाने कितने ताने बाने
मृत शरीर को जितनी जल्दी हो सके बाहर
जब तक है उपयोग तुम्हारा
तभी तक कदर
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