अलमारी में कपड़े भर गए थे
रखने की जगह नहीं
हर कप्पा भरा हुआ
कोई साडी कोई सूट तो कोई कुछ
तहा कर रखे हुए
एक निकाला तो न जाने कितने उघड़ गए
फिर तहा कर रखा
व्यवस्थित कर
हमारे मन में भी तो न जाने कितने कप्पे
बरसों से भरे पडे
एक को याद किया तो सब याद
एक के बाद एक परते खुलती गई
मान - अपमान
सुख - दुख
सफलता - असफलता
भाग्य - दुर्भाग्य
मन की अलमारी तो कभी रीती ही नहीं रही
समय के साथ भरती गई
नए घाव मिले तो
नयी उपलब्धियां भी मिली
अलमारी में से तो पुराने कपडे निकाल कर दिया जा सकता है
मन की टीस किसको दी जाए
वह तो पीछा नहीं छोड़ता
भूलाने की तमाम कोशिश व्यर्थ
थोड़े समय के लिए धुंधली जरूर हो जाती है
पर समय - असमय आकर खडी हो जाती है
किसी न किसी बहाने
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