मैं और तुम एक साथ ही
बडे हुए
पढे - लिखें
बहुत समानता थी
हममें और तुममें
बहने जैसी लगती थी
भाग्य एक नहीं था न
बरसों बाद तुम मिली
देख कर खुशी हुई
मिल कर मन से मन मिले
जी भर कर बातें करी
तुम भरी भरी लगी
मै खाली खाली
एक कसक और टीस सी चुभी
तुम्हारे चेहरे पर सुकून - निश्चिंतता
मैं आधी - अधूरी लगी
तब भी अकेली
आज भी अकेली
तुम भरे पूरे परिवार
पति और बच्चों के संग
मुझे भी ऐसा भाग्य मिला होता
वह हुआ नहीं
मैं तो टूटकर और बिखर कर रह गई
वक्त का सितम सह कर रह गई
ऐसा नहीं है
मैं अपने पैरों पर खड़ी हूँ
आत्मनिर्भर हूँ
मेरा अपना वजूद है
इसका गर्व है
फिर भी एक कसक है
क्या मैं भी इन सब की हकदार नहीं थी
कमी तो मुझमें कुछ भी नहीं थी
हाँ कमी निकालने वाले अवश्य मिले
मुझे जिंदगी के इस राह पर लाकर खडा कर दिया
खैर कोई बात नहीं
कहा गया है न
मुकम्मल इस जहां में कुछ भी नहीं
किसी को जमी तो किसी को आसमान नहीं मिलता
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