Friday, 11 December 2020

मातम और जश्न

यह कैसा अद्भुत खेल है
संसार में यह दोनों साथ-साथ चलते हैं
दिन में मातम
रात में जश्न
दोनों का साक्षीदार बना
रिश्तेदार की मृत्यु पर दिन में कंधा दिया
रात में अपने मित्र के बेटे की सगाई मे शामिल हुआ
दोनों ही जरूरी था
यह एक बार ही होना था
एक जगह ऑखों में ऑसू छलके
दूसरी जगह खिलखिलाकर हंसी छलकी
कैसा है यह जीवन
सुख दुःख साथ चलते हैं
कुछ रूकता नहीं है
जन्म का जश्न
मृत्यु का मातम
यह गाथा है मानव की
इनके साथ चलता रहता है
घटनाए घटित होती रहती है
भागीदार बनते हैं
साक्षीदार बनते हैं
जीवन से हर पल साक्षात्कार होता है
कौन सा पल कैसा
आज तक कोई नहीं जान पाया

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